17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और प्रथम चरण का मतदान 11 अप्रैल को होगा जिसमें उत्तराखण्ड राज्य की पांचों लोकसभा सीटें भी सम्मिलित हैं। उत्तराखण्ड में बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा की सरकारें बनती आयी हैं पूरे प्रदेश में लगभग डेढ़ दर्जन राजनैतिक परिवार हैं जिनमें आधा दर्जन ही शीर्ष पर हैं उन्हीं परिवारों से सांसद, मुख्यमंत्री, राज्यसभा, विधायक तथा मंत्री बनते हैं यह अघोषित नियम है। चुनाव हो या सुविधायें देने के समय यहां क्षेत्रवाद भी स्पष्ट रुप से दिखायी देता है, कोई भी बड़ा नेता आमने-सामने की टक्कर के साथ चुनाव मैदान में नहीं कूदता है बल्कि एक दल का बड़ा नेता जब किसी सीट से चुनाव लड़ता है तो दूसरा दल उसके मुकाबले अपना कमजोर प्रत्याशी उतार देता है यह अन्दर खाने सैटिंग की बात है जो लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत के रुप में देखी जा रही है। चुनाव आयोग का उद्देश्य निष्पक्ष चुनाव का होता है और समस्त निर्णय संविधान को सर्वोपरि रखकर किए जाते हैं। चुनाव के समय समस्त सरकारी मशीनरी चुनाव आयोग के अधीन हो जाती है जो संविधान के दायरे में आकर काम करती है। कुछ सरकारी कर्मचारी चुनावी