देश की जनता द्वारा चुनी गयी सरकार चाहे केन्द्र की हो या किसी राज्य की जब उसकी कार्यशैली संविधान के विपरीत होती है तो संवैधानिक संस्थाओं तथा संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के दायित्व बढ़ जाते हैं। न्यायपालिका एवं मीडिया से जनता को बड़ी उम्मीदें होती हैं और इन दोनों को अपने दायित्वों का निर्वाह निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ करना चाहिए। कार्यपालिका एवं विधायिका को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह आम जनता के खून-पसीने की कमाई तथा करों द्वारा प्राप्त राजस्व से ही अपने वेतन भत्ते तथा वाहन, आवास सहित अन्य व्यय करती हैं तो जनता के प्रति दोनों को जवाबदेह होना चाहिए। वर्तमान समय में विधायिका धन बल के आधार पर मताधिकार प्राप्त करती है तो कार्यपालिका में भी बिना किसी सुविधा शुल्क के छोटी हो या बड़ी सरकारी नौकरी नहीं मिलती यही कारण है कि जन प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद जनता से कट जाते हैं और कार्यपालिका बिना सुविधा शुल्क के कोई काम नहीं करती। ऐसा 80 के दशक के बाद से होता आया है लेकिन उस समय दाल में नमक खाया जाता था अब तो नम्बर दो के कार्यों का प्रतिशत 80 के पार हो गया है केवल 15-20 प्रतिशत ही कार्य ई