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Showing posts from March, 2020

केन्द्र व राज्य सरकार की असंवैधानिक कार्यशैली से आम जनता त्रस्त

देश की जनता द्वारा चुनी गयी सरकार चाहे केन्द्र की हो या किसी राज्य की जब उसकी कार्यशैली संविधान के विपरीत होती है तो संवैधानिक संस्थाओं तथा संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के दायित्व बढ़ जाते हैं। न्यायपालिका एवं मीडिया से जनता को बड़ी उम्मीदें होती हैं और इन दोनों को अपने दायित्वों का निर्वाह निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ करना चाहिए। कार्यपालिका एवं विधायिका को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह आम जनता के खून-पसीने की कमाई तथा करों द्वारा प्राप्त राजस्व से ही अपने वेतन भत्ते तथा वाहन, आवास सहित अन्य व्यय करती हैं तो जनता के प्रति दोनों को जवाबदेह होना चाहिए। वर्तमान समय में विधायिका धन बल के आधार पर मताधिकार प्राप्त करती है तो कार्यपालिका में भी बिना किसी सुविधा शुल्क के छोटी हो या बड़ी सरकारी नौकरी नहीं मिलती यही कारण है कि जन प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद जनता से कट जाते हैं और कार्यपालिका बिना सुविधा शुल्क के कोई काम नहीं करती। ऐसा 80 के दशक के बाद से होता आया है लेकिन उस समय दाल में नमक खाया जाता था अब तो नम्बर दो के कार्यों का प्रतिशत 80 के पार हो गया है केवल 15-20 प्रतिशत ही कार्य ई

दिल्ली गुजरात के दंगों ने किया देश की संस्कृति को कलंकित

हरिद्वार। अन्तर्राष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण समिति के प्रदेश अध्यक्ष तथा समाजवादी विचारक रामनरेश यादव ने कहा है कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है और किसी भी धर्म में मानवता के विरुद्ध कार्य करने की बात नहीं कही गई है। देश संविधान से चलता है तथा भारत की सत्ता संचालित करने के लिए गांधी एवं अम्बेडकर की विचारधारा पर काम होना चाहिए। सत्तारुढ़ दल ने सनातन धर्म और देश के संविधान को बदनाम किया है तथा 1984 के बाद 2020 में दोबारा हिन्दूत्व की गरिमा गिरी है, भविष्य में इन घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए अब देश को पुनः गांधी एवं अम्बेडकर की विचारधारा पर कार्य एवं व्यवहार करने की आवश्यकता है। दिल्ली में हुए दंगों के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार बताते हुए उन्होंने कहा कि शाहीन बाग में लम्बे समय तक चले धरने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को स्वयं धरना स्थल पर जाना चाहिए था तथा धरना देने वालों के दुःख दर्द को सुनना चाहिए थे। 2002 के गुजरात दंगे हों या 1984 एवं 2020 के दिल्ली दंगे तीनों घटनाओं ने विश्व पटल पर भारत की बहुसंख्यक आबादी को अतिवादी तथा कट्टरपंथ की श्रेणी में खड़ा क

चुनौती बनता जा रहा है समाचारों पत्रों का संचालन

समाचार-पत्र समाज के मार्ग दर्शक होते हैं और समाज के आईना (दर्पण) भी होते हैं, समाचार-पत्र का प्रकाशन एक ऐसा पवित्र मिशन है जो राष्ट्र एवं समाज को समर्पित होता है। समाचार-पत्र ही समाज और सरकार के बीच एक सेतु का काम करते हैं, जनता की आवाज सरकार तक तथा सरकार की योजनायें जनता तक पहुंचाकर विकास का सोपान बनते हैं। आजादी के पूर्व तथा आजादी के बाद से लगभग पांच दशक तक समाचार-पत्रों ने सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका का निर्वाह किया। 1975 में लगे आपातकाल से भी समाचार-पत्र विचलित नहीं हुए और उन्होंने अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वाह किया ऐसा तब तक ही हुआ जब तक पत्रकार ही समाचार पत्र के प्रकाशक, स्वामी एवं संपादक होते थे ऐसा अब नहीं है।  समाचार पत्रों की निष्पक्षता और निर्भीकता कुछ पंूजीपतियों को रास नहीं आयी और उन्होंने मीडिया जगत पर अपना प्रभुत्व जमाना प्रारम्भ कर दिया। पहले तो समाचार-पत्रों की जनता से पकड़ ढीली करने के लिए इलैक्ट्रोनिक मीडिया को जन्म दिया और बाद में प्रिंट मीडिया का स्वरुप बदल कर उसके मिशन को समाप्त कर व्यावसायिकता में बदल दिया। चंद पूंजीपतियों ने सरकार से सांठगांठ कर मीडिया जगत

गुजरात माडल पर दिल्ली में हुए दंगों के दोषियों को मिले सजा

दिल्ली देश का दिल है जहां गुजरात माडल पर हुए दंगों ने 2002 की पुनरावृत्ति कर सिद्ध कर दिया कि ये दंगे कोई अकस्मात घटी घटना थी या सुनिश्चित रुप से कराये गये। जिस देश को अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने आजाद कराया था वहां आज देखते ही गोली मारने की घोषणायें हो रही हैं। ये सब हो रहा है या कराया जा रहा है इसका उद्देश्य क्या है और देश की जनता का ध्यान दूसरी तरफ मोड़ने की योजना कौन बनाता है तथा कैसे लागू होती है यह ड्रामा बीते छः वर्षों से चल रहा है। देश की जनता को ठगने के लिए 2013-14 में जो घोषणायें की गयी थीं उसमें एक व्यापारी बाबा ही नहीं बल्कि अनेकों भगवाधारियों की भी हिस्सेदारी थी। एक भगवा रंग जिसे केसरिया भी कहते हैं और उसे सादगी तथा शांति का प्रतीक मानकर हमारे राष्ट्रध्वज में सबसे ऊपर स्थान दिया गया है आज उस रंग को ही दागदार बनाया जा रहा है यही कारण है कि दिल्ली में हुए दंगों की पचास से अधिक देशों ने आलोचना की है और संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है।  भाजपा अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती