राजनीति को समझ रहे थे खेल, गठबंधन हो गया फेल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का दिल जीतना बड़ी बात होती है और जनता का सारा रुझान अपनी तरफ मोड़ कर दूसरे के कामों को इतना बुरा बता दो कि जनता अपने दिल और दिमाग दोनों से निकाल दे यही कलियुग की सफलता का मूलमंत्र है जो केवल प्रचार माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है और इस प्रक्रिया को आत्मसात किया है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो अपने गलत निर्णयों को भी सही सिद्ध करने में कामयाब हुए यही उनकी दोबारा सफलता का मुख्य कारक बना। कौन अपना है और कौन पराया है, इस बात को आज तक कोई जान ही नहीं पाया लेकिन किस व्यक्ति और तंत्र को किस काम के लिए प्रयोग करना है इस बात का इल्म जिसको हो जाता है वह जीवन की सफलता रुपी सीढ़ी पर आगे बढ़ता रहता है स्वयं को दूसरे की तुलना में श्रेष्ठ सिद्ध करने की कलाकारी या तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी में थी या अब नरेन्द्र मोदी में है। विजय-विजय होती है और हार-हार होती है, अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाले सब कुछ हासिल करने के बाद भी सफल नहीं हो पाते और घर-परिवार छोड़कर एकांगी जीवन जीने वाले कर्तव्य के प्रति अकर्मण्य हो