भारत धर्म निरपेक्ष देश है और यहां सभी धर्मों को अपने धर्म का प्रचार करने तथा उसे मनाने की खुली छूट है कि प्रत्येक व्यक्ति धर्म की मर्यादा और संविधान के दायरे में रहकर अपने धार्मिक पर्व को मना सकता है लेकिन हमारे देश की कार्यपालिका एवं विधायिका ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को लोकतांत्रिक न रखकर अपने तानाशाही के शिकंजे में जकड़ रखा है जिससे देश और धर्म दोनों की स्वतंत्रता का अर्थ ही बदल गया है। लोकतंत्र में जनता का अधिकार सर्वोच्च होता है लेकिन आजकल भारत की व्यवस्था में लोक को परतन्त्रता में जकड़ कर तंत्र की तानाशाही का राज चल रहा है जो देश की स्वतन्त्रता को खतरा बन सकता है। हमारे राजनेताओं एवं ब्यूरोक्रेसी ने मिलकर देश को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है, राजनेता और सरकारी कर्मचारी तथा अधिकारियों के वेतन भत्ते प्रतिवर्ष बढ़ रहे हैं तो जनता पर करों की भरमार हो रही है, व्यापारियों पर टेक्स बढ़ता है तो वह भी जनता पर ही डाल देता है, सरकारी कर्मचारी बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करते वह मार भी जनता पर ही पड़ती है। अब जमाना इतना बदल गया किसी भ्रष्ट कर्मचारी की शिकायत ली नहीं जाती और शिकायत ले भी ली