2014 में सत्ता संभालने के बाद भाजपा सरकार ने 1975 के आपातकाल से भी कठोर निर्णय लिए, नोटबंदी तथा जीएसटी जैसे निर्णयों से देश का काफी नुकसान भी हुआ जनहानि एवं धनहानि होने बाद भी भाजपा सरकार ने अपना कोई भी निर्णय बदला नहीं। अपना कदम अनुचित होने के बाद भी कभी उस पर न तो अफसोस जताया न ही किसी के प्रति संवेदना। लगभग यही हाल 2017 के बाद यूपी की सत्ता संभालने के बाद वहां की राज्य सरकार का भी रहा है। यूपी ही नहीं पूरे देश की जनता अब इस नतीजे पर पहुंच गयी कि घर-परिवार के दायित्व को न संभालने वाला व्यक्ति कभी राजगद्दी का सफल संचालन नहीं कर सकता वह निरंकुश और तानाशाही में तो जी सकता है लेकिन किसी संविधान में बंधकर नहीं, यही कारण है कि देश के संविधान की शपथ लेकर कुर्सी संभालने वालों ने देश के संविधान और संविधान के निर्माताओं की अवज्ञा प्रारम्भ कर दी तथा स्वेच्छाचारिता से सत्ता का संचालन प्रारम्भ कर दिया जिसके परिणाम अब सामने आने लगे क्योंकि स्वार्थी जनता को सच्चाई समझने में विलम्ब होता है। भाजपा भले ही अब तक अपने निर्णयों पर अटल रही हो लेकिन यह पहला मौका है कि 2020 की शुरुआत ने भाजपा और संघ दोन