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Showing posts from August, 2019

देश लुट रहा है, जनता मायूसी में जीने को मजबूर

विदेशों में जमा कालाधन भारत वापस लाने वालों ने देश की जनता को अच्छे दिन आने का झांसा देकर सत्ता पर ऐसा कब्जा किया कि पूरे देश को धन से खाली करने का जो विश्व रिकार्ड बनाया उसका खुलासा कभी इनके सत्ता में न रहने पर यदि कोई राष्ट्रभक्त ईमानदार व्यक्ति देश की कुर्सी पर बैठा तो अवश्य करेगा। फिलहाल नोटबंदी कराकर दूसरों का धन निकलवाया, जीएसटी से करों की भरमार की, डीजल-पेट्रोल की बिक्री से धन बटोरा, जनता से जुर्माना वसूलकर ब्यूरोक्रेसी को मजबूत किया। देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के बहाने सोना गिरवी रखा। बैंकों का धन देकर कई चहेतों को विदेश भगा दिया। अब रिजर्व बैंक का रिजर्व धन भी ले लिया, देश के साथ क्या पूरे विश्व के किसी भी देश में इतनी बड़ी लूट कहीं नहीं हुई जितनी वर्तमान सरकार ने की।  जब कोई सरकार देश के विभागों की व्यवस्था अपने हाथ में न रखकर निजी क्षेत्र को सौंप दे तो समझ लो सरकार ने देश बेच दिया और जनता नए व्यवस्थापकों की गुलाम हो गयी। देश को आजाद कराने में किसका योगदान रहा और आजादी के महानायक की हत्या किसने की, अंग्रेजों के मुखबिर कौन थे ये सब बातें जनता जानती है लेकिन जनता स्वार

देश और समाज को बर्बाद करने वाले उद्योगों को बंद करे सरकार

बेलगाम होता जा रहा प्रदूषण प्रकृति के विनाश की पटकथा लिख रहा है और हमारी सरकार में बैठे राजनेता एवं ब्यूरोक्रेट्स विकास के नाम पर विनाश की मंजिले तैयार करने में मशगूल हैं। वर्तमान युग विज्ञान का युग है लेकिन भारत में योग, अध्यात्म एवं ज्योतिष अपने अलग-अलग दावे कर स्वयं के श्रेष्ठ होने के तर्क दे रहे हैं। हमारे देश में लग रहे उद्योगों से बेरोजगारी तो कम हुई नहीं बल्कि प्रदूषण इतना बढ़ गया कि समय रहते इस पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो प्रकृति प्रलयकाल के आगोश में समा जायेगी। आज ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण और बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग मानवता के विनाश की पर्याय बनती जा रही है लेकिन किसी वैज्ञानिक, योग एवं अध्याय के गुरु अथवा ज्योतिषियों ने ऐसा कोई शोध नहीं किया कि प्रकृति और संस्कृति में आ रहे बदलाव के मुख्य कारण क्या हैं?  हमारे देश में आज भी सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि पर आधारित है जो विकास से अछूती है लेकिन भ्रष्टाचार और महंगाई की मार झेलते हुए देश की सत्ता के संचालन हेतु करों के भार से इतनी दबती जा रही कि उसका दम घुटने के कगार पर है। सरकार कृषि को प्रोत्साहन न देकर प्रदूषण फैलाने वाले और

फसल चक्र को बदलकर स्वयं समृद्धिशाली बनें किसान

कई किसान संगठनों द्वारा बार-बार उठायी गयी किसान आयोग के गठन की मांग पर सरकार ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है अब किसानांे को अपनी समृद्धि के उपाय स्वयं तलाशने होंगे, किसान अब अनपढ़ नहीं हैं उन्हें स्वयं प्रयास करने होंगे। जिन चीनी मिलों की स्थापना किसान की समृद्धि के लिए की गई थी वे सभी आज जन स्वास्थ्य के लिए बड़े खतरे के रुप में सामने आ रही हैं। चीनी मिलों से बनने वाली चीनी और शराब दोनों ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं यदि समय रहते चीनी मिलों को बंद नहीं कराया गया तो आगामी बीस वर्षों में देश की 70 प्रतिशत आबादी शराबी और 80 प्रतिशत जनता नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो जायेगी। एक सर्वे के अनुसार अनुमान लगाया गया है कि जब से शुगर मिलों की संख्या बढ़ी और किसानों ने धान-गेंहू, दलहन तथा तिलहन के साथ ही मोटे अनाजों का उत्पादन बंद कर गन्ना उत्पादन में ही पूरी शक्ति लगा दी है तब से शराबियों और मरीजों की संख्या बढ़ी, परिणाम स्वरुप अब बड़े-बड़े चिकित्सालय उद्योग का रुप धारण कर रहे हैं और जनता की मेहनत का 30 से 40 प्रतिशत धन अब चिकित्सा पर व्यय होने लगा है, यह आंकड़ा एक दशक से लगातार बढ़ता ही ज

संविधान का सम्मान करना सरकार का नैतिक दायित्व

भारत का संविधान समानता, सामजिक समरसता और राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता का संदेश देता है। हमारे देश का संवैधानिक ढांचा कई लोकतांत्रिक देशों के संविधानों का सार ग्रहण करने के बाद तैयार किया गया है। देश को सर्वोपरि रखने के लिए देश के संविधान का सम्मान करना देश के सभी नागरिकों, जन प्रतिनिधियों एवं लोकसेवकों का दायित्व होता है और इन दायित्वों का निर्वाह निष्ठा एवं ईमानदारी से किया जाये इसीलिए सत्ता संचालन के लिए संवैधानिक पद और संवैधानिक संस्थाओं की स्थापना भी की गई है। जिस प्रकार राष्ट्र की सत्ता के संचालन के लिए संविधान की आवश्यकता होती है उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन को स्वस्थ एवं चिरायु रखने के लिए प्राकृतिक दिनचर्या की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार देश की साठ प्रतिशत आबादी ने अपनी दिनचर्या को अप्राकृतिक बनाकर स्वयं को नाना प्रकार की बीमारियों की गिरफ्त में फंसा लिया है उसी प्रकार हमारे देश के सत्तर प्रतिशत राजनेता एवं ब्यूरोक्रेट्स ने अपने नैतिक दायित्वों से विरत जाकर देश की संवैधानिक व्यवस्था को बिगाड़ कर विसंगति प्रधान बना दिया है जिसने देश की संवैधानिक व्यवस्था गड़बड़ाने लगी है। आज आवश्

विकास को भुलाकर देश को नये-नये मुद्दों में उलझा रही मोदी सरकार

केन्द्र में मोदी सरकार की दूसरी पारी है और पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कठोर निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। जिस प्रकार इन्दिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर लोगों को चौंका दिया था उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी ने भी नोटबंदी और कश्मीर से धारा 370 हटाकर पूरे विश्व में सनसनी फैला दी है। 1975 का आपातकाल और 2016 की नोटबंदी दोनों ही निर्णय दोनों नेताओं ने अपने सशक्त होने का एहसास कराने के लिए लिए थे। तीन तलाक बिल पास कराना एक धर्म विशेष से सम्बन्धित है तो कश्मीर का विभाजन और 370 धारा का हटना भी देश की किसी प्रगति के लिए उठाया गया कदम नहीं कहा जा सकता है जिस प्रकार इन्दिरा गांधी ने बंगलादेश को अलग देश बनाकर पाकिस्तान को तगड़ा झटका दिया था उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर से धारा 370 हटाकर पाक को इतना तगड़ा झटका दिया कि उसकी आंखें तिलमिला गयीं और दिन में तारे नजर आने लगे। परिणाम स्वरुप बीते वर्षों की तुलना में इस वर्ष 15 अगस्त पर विशेष सतर्कता बरतनी पड़ी। जिस प्रकार इन्दिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर भारत को नेता विहीन बना दिया था उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी ने

सनातन धर्म संस्कारित पर्वों का गुलदस्ता: स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती

हरिद्वार। सनातन धर्म संस्कार एवं संस्कृति का संरक्षण करने वाले पर्वों का गुलदस्ता है जिसका प्रत्येक पुष्प सुख, समृद्धि एवं सामाजिक समरसता का संदेश देता है, उक्त उद्गार हैं श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामण्डलेश्वर स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी महाराज के जिन्होंने विष्णु गार्डन स्थित आश्रम में श्रावण मास के अन्तिम सोमवार को आयोजित महा रुद्राभिषेक में पधारे भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। देवाधिदेव महादेव को सृष्टि का सर्वशक्तिमान एवं सहृदयवान भगवत स्वरुप शक्ति बताते हुए कहा कि विश्व में सर्वाधिक भक्त भोलेनाथ के ही हैं क्योंकि वे सामान्य आराधना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रावण मास की विशिष्टताओं की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इसी माह में गंगा अपने तटों की स्वच्छता करती है और जीव-जन्तु का वनस्पतियों की सर्वाधिक उत्पत्ति भी इसी माह में होती है। श्रावण मासान्त आने वाले श्रावणी पर्व एवं स्वतंत्रता दिवस को विशेष संयोग बताते हुए उन्होंने कहा कि एक तरफ सम्पूर्ण राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता पर गौरवान्वित होगा तो बहने अपने भाईयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर सर्वमंगल की क

अभी तक क्यों शुरु नहीं हुए कुम्भ मेले के स्थायी निर्माण कार्य?

हरिद्वार में आयोजित हो रहे कुम्भ मेला 2021 के सभी स्थायी अथवा अस्थायी निर्माण कार्यों को 31 दिसम्बर 2020 तक पूर्ण करना है जिसके लिए केन्द्र सरकार से राज्य सरकार द्वारा पांच हजार करोड़ रुपये की मांग की गई। मेला अधिकारी सहित अधिकांश अधिकारियों की नियुक्ति भी हो चुकी है लेकिन अभी तक केवल बैठकों का दौर चल रहा है न तो कोई भी कार्य योजना तैयार की गई न ही किसी कार्य की निविदायें ही आमंत्रित की गई। हरिद्वार में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले कांवड़ सहित अन्य मेलों की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यहां स्थायी प्रवृत्ति के निर्माण कार्यों की आवश्यकता है लेकिन अब तक सम्पन्न हुए कुम्भ एवं अर्द्धकुम्भ मेलों को देखा जाये तो 2004 के अर्द्धकुम्भ को छोड़कर बाद में कोई भी स्थायी प्रवृत्ति का बड़ा निर्माण कार्य नहीं हुआ है। हरिद्वार के जिला तथा पुलिस प्रशासन को प्रतिवर्ष श्रावण मास के कांवड़ मेले में भारी अव्यवस्थायें का सामना करना पड़ता है लेकिन आज तक किसी अधिकारी ने पांच-दस लाख यात्रियों के लिए होने वाली स्थायी व्यवस्था के लिए कोई प्रबन्ध नहीं किए जबकि मेला सम्पन्न हो जाने के बाद दावे करोड़ों में होते हैं जो

अव्यवस्थाओं के बीच कब तक सम्पन्न होते रहेंगे कांवड़ मेला

हरिद्वार में प्रतिवर्ष लगने वाले कांवड़ मेले की दुश्वारियां प्रतिवर्ष बढ़ती ही जा रही हैं परिणाम स्वरुप पैदल आने वाले कांवड़ यात्रियों की संख्या में इस वर्ष अपेक्षाकृत काफी कमी देखी गई। पूरे कांवड़ मेले के दौरान स्नान करते समय डूब कर, वाहन से कुचल कर या चट्टान इत्यादि गिरने से लगभग तीस कांवड़ यात्रियों की मृत्यु हो गयी सभी उत्तराखण्ड से बाहर के थे इसलिए किसी को मुआवजे के रुप में फूटी कौड़ी नहीं दी गई। कांवड़ियों के कई वाहन क्षतिग्रस्त हुए तो आधा दर्जन वाहनों में आग लगने से वे भस्म हो गए। कांवड़ यात्रियों ही नहीं बल्कि पत्रकारों को भी ड्यूटी पर तैनात पुलिस ने अपनी लाठियों का निशाना बनाया इसके बाद भी मेला सकुशल सम्पन्न होने के समाचार छपवाकर खूब अपनी पीठ थपथपायी। पंचपुरी में 15 दिन तक जन जीवन अस्त-व्यस्त रहा और स्कूलों में घोषित अवकाश के बाद अन्य सभी सरकारी कार्यालयों में कांवड़ ड्यूटी बताकर अघोषित अवकाश का वातावरण रहा जबकि जल चढ़ने के बाद आराम करने और थकान मिटाने का भी अवकाश दिया गया इसके वे सभी कर्मचारी हकदार भी हैं। केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और कांवड़ मेले में आने वाले पंजाब, दिल्ली, हर