समाज के प्रति संवेदनशीलता, कानून का भय और कर्तव्य के प्रति निष्ठा ये सब बीते जमाने की बातें हो गयी हैं। हमारी सरकारें जन स्वास्थ्य के प्रति कितनी संवेदनशील हैं इसका अंदाजा नित नई-नई बढ़ रही बीमारियों डेंगू, चिकनगुनिया, कैंसर तथा अन्य बीमारियों को दिन-प्रतिदिन बढ़ रही भयावहता से सहज ही लगाया जा सकता है। एक जमाना था जब चेचक, मलेरिया, पोलियो तथा गले में घेंघा जैसी बीमारियां बढ़ रही थीं तो सरकार ने उन पर नियंत्रण किया लेकिन वर्तमान में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हमारी सरकारें ही बीमारियों पर नियंत्रण करने वालों के नियंत्रण में काम कर रही है। सृष्टि का सत्य है कि यहां न कोई धन सम्पदा लेकर आता है न ही जाता है सबकुछ किसी व्यक्ति विशेष की सम्पत्ति न होकर राष्ट्र और समाज की ही सम्पत्ति होती है बल्कि जो व्यक्ति गलत ढंग से अर्जित किए धन का संचय करता है वह इसी जन्म में नरक ;जेलद्ध की सजा भुगतता है। अब समाज का प्रत्येक व्यक्ति सुखमय एवं समृद्धशाली ;स्वर्ग सदृशद्ध जीवन जीने के चक्कर में अपना अन्त समय नरक ;जेलद्ध गामी बना लेता है ऐसा व्यक्ति की दूरगामी सोच के अभाव में होता है। केन्द्र सरकार हो या राज्य स