समाचार-पत्र समाज के मार्ग दर्शक होते हैं और समाज के आईना (दर्पण) भी होते हैं, समाचार-पत्र का प्रकाशन एक ऐसा पवित्र मिशन है जो राष्ट्र एवं समाज को समर्पित होता है। समाचार-पत्र ही समाज और सरकार के बीच एक सेतु का काम करते हैं, जनता की आवाज सरकार तक तथा सरकार की योजनायें जनता तक पहुंचाकर विकास का सोपान बनते हैं। आजादी के पूर्व तथा आजादी के बाद से लगभग पांच दशक तक समाचार-पत्रों ने सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका का निर्वाह किया। 1975 में लगे आपातकाल से भी समाचार-पत्र विचलित नहीं हुए और उन्होंने अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वाह किया ऐसा तब तक ही हुआ जब तक पत्रकार ही समाचार पत्र के प्रकाशक, स्वामी एवं संपादक होते थे ऐसा अब नहीं है।
समाचार पत्रों की निष्पक्षता और निर्भीकता कुछ पंूजीपतियों को रास नहीं आयी और उन्होंने मीडिया जगत पर अपना प्रभुत्व जमाना प्रारम्भ कर दिया। पहले तो समाचार-पत्रों की जनता से पकड़ ढीली करने के लिए इलैक्ट्रोनिक मीडिया को जन्म दिया और बाद में प्रिंट मीडिया का स्वरुप बदल कर उसके मिशन को समाप्त कर व्यावसायिकता में बदल दिया। चंद पूंजीपतियों ने सरकार से सांठगांठ कर मीडिया जगत पर अपने नियम कानून थोप दिए परिणाम स्वरुप आज समाचार-पत्र एवं चैनलों की समाज में क्या इज्जत है किसी से छुपा नहीं है। इतना ही नहीं विकास के युग में भागीदारी करते हुए सोशल मीडिया को जन्म दिया गया जिससे पत्रकारिता रुपी पवित्र मिशन की रही सही साख पर भी बट्टा लग गया। नैतिक पतन के इस युग से मीडिया भी अछूता नहीं रहा और आज समाज मीडिया को किस दृष्टि से देख रहा तथा समाचार-पत्र एवं चैनलों को कितना सम्मान दे रहा है इसके लिए मीडिया का स्वार्थ जिम्मेदार है।
‘गंगा का संदेश’ भी पत्रकारिता के पवित्र मिशन को बरकरार रखने के लिए सामर्थ्य के अनुरुप सक्षम है क्योंकि स्वार्थ और सम्मान दोनों एक साथ किसी को नहीं मिलते। समाचार-पत्रों का प्रकाशन धनार्जन के लिए नहीं समाज में समरसता, एकता तथा भाईचारा का वातावरण बनाने के लिए होता है। समाजवाद से संविधान एवं समाज दोनों की रक्षा होती है जबकि व्यवसायिकता स्वार्थपूर्ति का माध्यम होती है। सरकार और समाज दोनों का दायित्व होता है कि इन दोनों के बीच सेतु का काम करने वाले प्रचार-तंत्र को दोनों मिलकर संपुष्ट करें। समाचार-पत्र तब तक ही अपने मिशन पर कायम रहते हैं जब तक सरकार और समाज दोनों का सहयोग उनको मिले। इस समाचार-पत्र ने भी इस सफर को बमुश्किल तमाम अपने सीमित संसाधनों के साथ तय किया है तथा पाठकों का भरपूर सहयोग भी प्राप्त हो रहा है अन्यथा कई समाचार-पत्र पाठकों के अभाव में अपनी अंतिम यात्रा पूर्ण कर गए तो कई ने मिशनरी पत्रकारिता को बाय-बाय कर व्यवसायिकता का लबादा ओढ़ लिया। फिलहाल समाचार-पत्रों के साथ दुष्वारियां न तो पहले कम थीं और न ही अब कम हैं तथा भविष्य में यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि हमारे मार्ग में कोई बाधा नहीं आयेगी। समाचार-पत्र का संपादन संघर्षपूर्ण जीवन की सौगात है जिसे स्वीकारने वाला सदैव समाज का प्रिय रहा है और सरकार चाहे राज्य की हो या केन्द्र की समाचार-पत्रों के प्रति बिना किसी भेदभाव के उनका पोषण करना चाहिए। ‘गंगा का संदेश’ अपने नवें वर्ष की यात्रा प्रारम्भ करते हुए गौरवान्वित है इस देश की सहृदयवान जनता ने यथा संभव अपना भरपूर योगदान दिया हम सदैव समाज एवं सरकार दोनों के आभारी रहेंगे।
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